रिश्तेदारों के हक़

रिश्तेदारों के हक़

  • Apr 14, 2020
  • Qurban Ali
  • Tuesday, 9:45 AM

माँ-बाप का और रिश्तेदारों का हम पर बहुत बड़ा हक है। कुरान शरीफ में इसकी बड़ी ताकीद है और प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने बड़ा हक़ बताया है । एक बार एक शख्स ने हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से कहा , मुझे कोई ऐसी बात बताइए जो मुझे जन्नत में ले जाए। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया “ अल्लाह की बंदगी करो , किसी को उसका साझी न बनाओ , नामज़ ठीक अदा करो और रिश्तेदारों का हक अदा करो ” और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यह भी फ़रमाया 'जो शख्स रोज़ी में बरकत चाहे वह रिश्तेदारों के साथ अच्छा सुलूक करे।' प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अपने रिश्तेदारों के साथ अच्छा बर्ताव करते थे । एक बार आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) गोश्त बाट रहे थे कि एक औरत आई, हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जल्दी से चादर बिछाई और वे उस पर बैठ गयी। ये हज़रत हलीमा (रज़ी अल्लाह ता'अला अन्हो) थी। आप ही ने प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को बचपन में दूध पिलाया था । हम पर सबसे बड़ा हक हमारे माँ-बाप का है। माँ-बाप की खिदमत, उनकी मदद, उनकी इज़्ज़त व बड़ाई और उनकी एहसानमंदी हमारा सबसे पहला फ़र्ज़ है । खुदा ने अपनी किताब में माँ बाप के साथ अच्छे सुलूक की बहुत ताकीद की है और हर जगह अपने शुक्र के साथ माँ-बाप का शुक्र गुज़ार रहने की वसीयत की है। प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने तो यहाँ तक फ़रमाया है की माँ-बाप तुम्हारे हक में जन्नत है और माँ-बाप ही तुम्हारे हक में जहन्नम है यानी माँ-बाप की खिदमत और फरमाबरदारी करके तुम जन्नत हासिल कर सकते हो और उनकी नाफ़रमानी करके तुम जहन्नम का इंधन बन सकते हो । माँ-बाप के बाद दुसरा रिश्तेदारों का दर्जा व हक है । हम दीनी किताबे पढ़कर रिश्तेदारों के हक मालूम करते है, उनके हक अदा करने की पूरी कोशिश करते है और उनके साथ बड़ी मुहब्बत और खुलूस से पेश आते है। उनके साथ हर तरह अच्छा सुलूक करते है, उनके दुःख दर्द में शरीक होते है। अगर वो ज़रूरतमंद हो तो अपनी हैसियत के मुताबिक उनकी मदद करते है। उनके काम काज में उनका हाथ बटाते है, बड़ो की इज़्जत करते है और छोटो के साथ प्यार से पेश आते है । अगर वो क़र्ज़ मांगे तो क़र्ज़ दे देते है । उनकी इज्जत व आबरू को अपनी इज्ज़त समझते है। गरज़ हर तरह उनके साथ अच्छा सुलूक करते है और उनपर कोई एहसान नहीं जताते।

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